ABSTRACT:
उदरपूर्ति के लिए निरंतर भागता आखेटक आदिमानव जहां कही भी किसी कन्दरा में जरा सा भी स्थिर हुआ। उसने अपने भीतर उभरते सौन्दर्य को चित्रकला के माध्यम से उकेरा। विष्व में विद्यमान षैलाश्रयों और षैलचित्रों के साक्ष्य आज भी उस काल के मानव की अभिव्यक्ति की कहानी कहते हैं। षैलचित्रों को एक ओर जहां मानव सभ्यता के क्रमिक विकास में कला के उभरते चिन्ह के रूप में देखा जा सकता है] तो वहीं उन्हें दुसरी ओर इतिहास लेखन की विकसित होती प्रारम्भिक] सांकेतिक षैली के विकास का प्रथम सोपान भी कहा जा सकता है। प्रस्तर उपकरणों से आदिमानव की आखेटक जीवन षैली का अनुमान मिलता है] जबकि भित्ती चित्रों से आखेटक जीवन पद्वति और उस काल के मानव में उभरती कला और सभ्यता के अंष भी दिखायी पड़ते हैं। इन चित्रों की सबसे बड़ी विषेषता यह है कि इनका चित्रण स्वाभाविक हुआ है। जो मानव के चतुर्दिक विद्यमान दृष्यों जैसे आखेट] नृत्य] संगीत से प्रेरित है। षैल चित्र मानवकला के प्राचीनतम साक्ष्य है। विष्व में यत्र-तत्र बिखरे हुएष्षैलचित्रों की श्रृखलाओं में उकेरी गई आकृतियों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि छत्तीसगढ़ के षैलाश्रयों पर खोजी गई षैलचित्रों में मानव आकृतियां बहुतायत में उकेरी पाई गई है। जो छत्तीगसढ़ के षैलचित्रों के साक्ष्यों को विष्व पटल पर एक विषिष्ट पहचान देती है।
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प्रियांकी गजभिये. मानव विकास के इतिहास में कला के उभरते चिन्ह और शैलचित्र (छ.ग. के विषेष संदर्भ में). International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2024; 12(2):111-6. doi: 10.52711/2454-2687.2024.00019
Cite(Electronic):
प्रियांकी गजभिये. मानव विकास के इतिहास में कला के उभरते चिन्ह और शैलचित्र (छ.ग. के विषेष संदर्भ में). International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2024; 12(2):111-6. doi: 10.52711/2454-2687.2024.00019 Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2024-12-2-6
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