ABSTRACT:
ऐसे समय में जब कि विश्व के सभ्य राष्ट्रों में लोकतंत्र को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है, लोकतंत्री शासन पद्धती में अब राज्य का विकसित स्वरूप कल्याणकारी राज्य का हो गया है अर्थात् ऐसे राज्य की परिकल्पना जिसमें सभी वर्ग, धर्म, आयु, लिंग के लोगों का सामूहिक एवं चतुर्दिक विकास सभी मानव अधिकारों के साथ-साथ संभव होगा।
लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था का आशय यह है कि इस शासन व्यवस्था में अधिक से अधिक लोगों की सहभागिता। भारत वर्ष प्राचीन काल से ही ग्राम पंचायतों की भूमि रहा है। अतः राष्ट्र के विकास की कल्पना गांवों के विकास के बिना नहीं की जा सकती। गांधी जी का स्पष्ट मानना था कि भारत का विकास गांवों में निहित है। ग्रामीण विकास की अवधारणा प्राचीन स्वरूप से जुड़ी हुई थी, जिसमें ग्राम एक प्रजातंत्रात्मक आत्मनिर्भर गणराज्य के रूप में था, जिसे उन्होंने ग्राम स्वराज की संज्ञा दी थी। गांधी जी के ग्राम स्वराज्य के विचारानुसार ‘‘प्रत्येक ग्राम एक ऐसा परिपूर्ण गणराज्य होना चाहिए जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपने पड़ोसियों पर आश्रित न हो। इस प्रकार से विकास की यह गांधी वादी विचारधारा पुर्णतः भारतीय परिवेश एवं समाज व्यवस्था के अनुकूल रही है।
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पीयूष कुमार पाण्डेय. गाॅधीजी और ग्राम स्वराज. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(4): Oct. - Dec. 2014; Page 212-214.
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पीयूष कुमार पाण्डेय. गाॅधीजी और ग्राम स्वराज. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(4): Oct. - Dec. 2014; Page 212-214. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2014-2-4-4