Author(s): श्याम सुन्दर पाल

Email(s): shyamsunder.yoga@gmail.com

DOI: Not Available

Address: डाॅ. श्याम सुन्दर पाल
योग विभाग, इंदिरा गाॅधी राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय, अमरकंटक (म.प्र)
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 5,      Issue - 2,     Year - 2017


ABSTRACT:
व्यक्तित्व एक विकासात्मक तंत्र है। जन्म से लेकर मृत्यु तक यह प्रक्रिया चलती रहती है। प्रत्येक व्यक्ति में जन्मजात कुछ जैविक योग्यताएँ वर्तमान रहती है, मनुष्य इन्हीं योग्यताओं के साथ सामाजिक प्रभावों के बीच पलता बढ़ता है। इस प्रकार जन्मजात जैविक योग्यताओं और सामाजिक प्रभावों का अन्तःक्रियाओं के फलस्वरूप ही किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व अपूर्व ढंग का होता है। प्रत्येक व्यक्ति की समानता और अपूर्वता किस प्रकार निर्धारित होती है इस पर मनोवैज्ञानिकों के बीच दो तरह की विचारधाराएँ है। एक विचारधारा व्यक्तित्व का विकास आनुवंषिकता के कारण मानती है और दूसरी विचारधारा इसका आधार वातावरण को मानती है।


Cite this article:
श्याम सुन्दर पाल. व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास में योग की भूमिका. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2017; 5(2): 73-76.

Cite(Electronic):
श्याम सुन्दर पाल. व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास में योग की भूमिका. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2017; 5(2): 73-76.   Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2017-5-2-2


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