ABSTRACT:
जीवन में सफलता का आधार वास्तव में शिक्षा में निहित है। समय के साथ-साथ शिक्षा के उद्देश्य भी बदलते रहते हैं। स्वतंत्रयोत्त्र भारत में शिक्षा को सामाजिकरण का समस्त साधन मानते हुए इसके द्वारा वैयक्तिकता व नागरिकता के गुणों को विकसित करने का प्रयत्न किया गया।आज कल हम शिक्षा को व्यवसायोन्मुख करने का प्रयत्न कर रहे है। शिक्षा द्वारा विकल्पों में से उत्तम को चुनने की कुशलता विकसित होनी चाहिए। आज हम पूर्णतः स्वतंत्र रहकर अपने हित को सर्वोपरि रखकर प्रायः विकल्प चुना करते है। परन्तु वास्तव में होना नहीं चाहिए। स्वतंत्रता का आशय यह नहीं है कि चुनाव के समय हम देश हित या सामाजिक हित पर ध्यान नहीं दे। पूरी शिक्षा वास्तव में मूल्य निर्धारण की ही प्रक्रिया है। भारतीय नागरिकों में शिक्षा द्वारा विकसित किये जाने वाले मूल्यों के बारे में हमारे शिक्षाविदों, मनोवैज्ञानिकों, शिक्षकों व अभिभावकों में आज तक मतैक्य नहीं है। जीवन एक वास्तविक सत्य है जिसमें शिक्षक शब्द की शिक्षा व्यवस्था का सूत्रधार है। किसी भी देश का परिचय वहाँ की संस्कृति सभ्यता एवं नागरिकों के निर्माण में प्रमुख भूमिका शिक्षक की ही होती है। शिक्षक की महत्ता पड़ प्रकाश डालने से पता चलता है।शिक्षा देश की बुनियादी है और शिक्षक राष्ट्र निर्माता। शिक्षक वह महान विभूति है, जो ज्योति पुुंज है, जो स्वयं जलकर शिक्षा को आध्यात्मिक का अधिष्ठान देता हैं शिक्षक हृदय परिवर्तन करते है। दिशा परिवर्तन के लिए दिशा खोजते हैं।
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कमल नारायण गजपाल, रंजन कुमार चैबे. बी.एड. के प्रशिक्षणार्थियों के मानवाधिकार के प्रति जागरूकता पर एक अध्ययन. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2020; 8(4):242-250.
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कमल नारायण गजपाल, रंजन कुमार चैबे. बी.एड. के प्रशिक्षणार्थियों के मानवाधिकार के प्रति जागरूकता पर एक अध्ययन. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2020; 8(4):242-250. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2020-8-4-5
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