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किशोर कुमार अग्रवाल, राजेशवरी
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डाॅ. किशोर कुमार अग्रवाल1, राजेशवरी2
1प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष - इतिहास विभाग, डाॅ. खूबचंद बघेल शासकीय स्नातकोत्तर महा. विद्या़. भिलाई - 3 जिला - दुर्ग (छ.ग.)
2पी-एच.डी. शोध छात्रा, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर (छ. ग.)
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 7,
Issue - 2,
Year - 2019
ABSTRACT:
भारत के दुर्गम क्षेत्रों में आज भी ऐसे अनेक मानव समूह है जो हजारों वर्षों से विश्व की सभ्यता से दूर अपनी सामाजिक एवं सांस्कृतिक चेतना एवं पहचान को बनाए हुए उन अंचलों में निवास करते है, जो सामाजिक सभ्यता एवं समाज की मुख्य धारा से दूर है। इन्हे प्राचीन सामाजिक एवं आर्थिक जीवन का प्रतिनिधि भी कहा जा सकता है। इन मानव समूहों का आदिवासी एवं जनजाति जैसे नामों से संबोधित किया जाता है। आदिवासीयों ने अपनी अर्थव्यवस्था का विकास मुख्य धारा से दूर स्वतंत्र रूप से किया। बस्तर, भारत के छत्तीसगढ़ प्रदेश के दक्षिण दिशा में स्थित जिला है। बस्तर जिले एवं बस्तर संभाग का मुख्यालय जगदलपुर शहर है। इसका क्षेत्रफल 4023.98 वर्ग कि.मी. है। बस्तर जिले की जनसंख्या वर्ष 2011 में 14, 11, 644 है। वर्तमान समय में कोंड़ागांव जिले को सम्मिलित किया गया है। बस्तर की जनसंख्या में 70 प्रतिशत् जनजातीय समुदाय है। बस्तर जिले की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि और वनोपज संग्रहण है। बस्तर में मुख्यरूप से धान, मक्का, गेहूँ, ज्वार, कोदों, कुटकी, चना, तुअर, उड़द, तिल, राम-तिल, सरसों का उत्पादन किया जाता है किंतु बस्तर क्षेत्र में सिंचाई का अभाव है। यहां कृषि के आलावा पशुपालन, कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन भी सहायक भूमिका निभाते है। वनोपज संग्रहण यहाॅ के ग्रामीणों के जीवन उपार्जन के प्रमुख स्त्रोत में से एक है। वनोपज संग्रहण में कोसा (तसर), तेंदू पत्ता, महुआ, लाख, धूप, साल, बीज, इमली, अमचूर, कंद-मूल, हर्रा, औषधियां प्रमुख है। वन सम्पदा में बस्तर का क्षेत्र बहुत धनी है। उच्च श्रेणी के सागौन, साल, बाँस और मिश्रित प्रजाति के बहुमूल्य वन यहाॅ विद्यमान हैं। बस्तर के कोमलनार व मंगनार क्षेत्र का गगन चुम्बी साल नेपाल के साल तुल्य है। साल सागौन के भांति बाँस के संदर्भ में भी यह क्षेत्र परिपूर्ण है। बाँस कागज बनाने के लिए आवश्यक है। इसके अतिरिक्त बाँस से बहुत से कुटीर उद्योग जैसे- टोकरी, चटाई, झाडू, टटिया, सुपेलिया, सुपा, पंखा, आदि बनाने में प्रयोग करते है। बाँस का उपयोग आदिवासी लोग ताड़ी उतारने में भी प्रयोग करते है। कृषि एवं वनोपज संग्रहण और इससे जुड़े हुए कुटीर उद्योग आदिवासीयों के जीविका के मुख्य साधन है। यहाॅ आज भी आधुनिकता का अभाव दिखाई पड़ता है। बस्तर के विकास के लिए सरकार द्वारा अनेक योजनाएं चलाई जा रही है किंतु वह पर्याप्त नही है। और अधिकांश बाहर से आये लोग इसका लाभ उठा रहे है। यहा के कुछ गिने चुने लोग ही लाभंावित होते है। सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में स्वयं को असमर्थ पाते है क्योंकि यहाॅ की अधिकांश जनसंख्या अशिक्षित, भोले-भाले, शांत, सरल जीवन व्यतीत करने वाले होते है। बस्तर में विकास के अनेक संभावनाए मौजूद है।
Cite this article:
किशोर कुमार अग्रवाल, राजेशवरी. छत्तीसगढ़ आदिवासियों के आजीविका के साधन वर्तमान परिदृश्य में. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2):544-546.
Cite(Electronic):
किशोर कुमार अग्रवाल, राजेशवरी. छत्तीसगढ़ आदिवासियों के आजीविका के साधन वर्तमान परिदृश्य में. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2):544-546. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2019-7-2-44