ABSTRACT:
भारत के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में समाचार पत्रों की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। स्वतंत्रता पूर्व पत्रकारिता समाज एवं देषहित के लिये समर्पित रही है। समाज एवं राष्ट्र निर्माण में हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चैथा स्तंभ कहा जाता है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तंभ है इसमें चैथे स्तंभ के रुप में पत्रकारिता को शाामिल किया गया है। विधायिका का कार्य कानून बनाना है, कार्यपालिका उसे लागू करती है और न्यायपालिका उन कानूनों की व्याख्या कर उसका उल्लंघन करने वालों को दंडित करती है। किन्तु इन तीनों स्तंभों के सहारे लोकतंत्र दृढ़तापूर्वक खड़ा नहीं रह सकता उसे एक चैथे स्तंभ की भी आवष्यकता होती है, उसका नाम है पत्रकारिता जो जनता की वास्तविक स्थितियों का दर्षान तो कराता ही है, लोकतंत्र के बहुआयामी विकास में बड़ी भूमिका अदा करता है। किसी देष में स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया की भी उतनी आवष्यकता है जितनी लोकतंत्र के अन्य तीन स्तंभो की है। इसका संबंध समाज के अंतिम व्यक्ति से लेकर नेतृत्व के षिखर-पुरुष तक होता है।
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यषवंत साव. हिन्दी पत्रकारिता का विकास गांधी युग तक. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2021; 9(1):1-5.
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यषवंत साव. हिन्दी पत्रकारिता का विकास गांधी युग तक. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2021; 9(1):1-5. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2021-9-1-1
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