Author(s): प्रांशु कुमार मौर्य, निधि

Email(s): pranshumaurya9@gmail.com

DOI: 10.52711/2454-2687.2023.00016   

Address: प्रांशु कुमार मौर्य1, निधि2
1असिस्टेंट प्रोफेसर - योग विभाग, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, सांकरा, कुम्हारी दुर्ग - छत्तीसगढ़.
2पी. एच. डी रिसर्च स्कॉलर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय - उत्तर प्रदेश.
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 11,      Issue - 2,     Year - 2023


ABSTRACT:
बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।। मानव जीवन एक बड़ा सौभाग्यशाली और अनमोल जीवन माना गया है। जो सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन इतना सौभाग्यशाली एवं इतनी प्रगति करने के बाद भी उसका जीवन हताशा, निराशा, घुटन, पीड़ा, पतन और पराभव से बीत रहा है। प्रत्येक प्राणी काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, तनाव, चिंता अवसाद आदि मानसिक विकारों से घिरा हुआ है। वह सुख शांति की कामना कर रहा है। जिससे दुखों से मुक्त होकर अपने जीवन लक्ष्य की प्राप्त कर सके। जिसके परिपेक्ष्य में तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में मानव उत्कर्ष के परिपेक्ष्य में नवधा भक्ति की व्यवहारिक व्याख्या बहुत ही सुंदर ढंग से की है। यदि व्यक्ति अध्यात्म का मार्ग अपनाकर नवधा भक्ति को अपने जीवन व्यवहार में अपनाता है। तो निश्चय ही उसका जीवन पतन, पराभव, संतापो, दुखों आदि से मुक्त हो जाएगा और प्राणी शीघ्र ही आनंद पूर्वक अपने जीवन लक्ष्य की प्राप्ति कर लेगा और नवधा भक्ति की साधना से प्राणी संसार सागर से मुक्त होकर परमात्मा चेतना में विलीन हो जाता है


Cite this article:
प्रांशु कुमार मौर्य, निधि. मानव उत्कर्ष के परिपेक्ष्य में महाकाव्य रामचरितमानस में वर्णित नवधा भक्ति की व्यावहारिक जीवन में प्रासंगिकता. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2023; 11(2):107-5. doi: 10.52711/2454-2687.2023.00016

Cite(Electronic):
प्रांशु कुमार मौर्य, निधि. मानव उत्कर्ष के परिपेक्ष्य में महाकाव्य रामचरितमानस में वर्णित नवधा भक्ति की व्यावहारिक जीवन में प्रासंगिकता. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2023; 11(2):107-5. doi: 10.52711/2454-2687.2023.00016   Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2023-11-2-7


सन्दर्भ सूची
1-    हनुमान प्रसाद पोधार, श्रीरामचरित मानस, घनश्यामदास जालान, गीताप्रेस गोरखपुर, अरण्यकाण्ड, पृष्ट 646 3/33/4
2-    हनुमान प्रसाद पोधार, श्रीरामचरित मानस, घनश्यामदास जालान, गीताप्रेस गोरखपुर, अरण्यकाण्ड, पृष्ट 646 3/34 1,2, 3
3-    महार्षि पतञ्जलि, योगदर्शन, गीता प्रेस गोरखपुर, उ0 प्र0, पृष्ट- 26, 70, 71
4-    संत चेतन दास, कबीर के दोहे, श्री सरस्वती प्रकाशन, अजमेर, पृष्ट-6
5-    श्रीमद्भगवत गीता, गीता प्रेस गोरखपुर, श्लोक 2/62, पृष्ट 47
6-    श्रीमद्भगवत गीता, गीता प्रेस गोरखपुर, श्लोक 2/63, पृष्ट- 47
7-    श्रीमद्भगवत गीता, गीता प्रेस गोरखपुर, श्लोक 17/15, पृष्ट- 103
8-    संपादक “श्रीराम शर्मा आचार्य, अखण्ड ज्योति पत्रिका, दिसम्बर 1998, पृष्ट- 20
9-    श्रीराम शर्मा आचार्य, 108 उपनिषद, ज्ञानखण्ड, युरा निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, मथुरा- 201003 ईशावास्योपनिषद् मंत्र- 1, पृष्ट- 34
10-   पुस्तक गीत सुमन, युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट गायत्री’ तपोभूमि मथुरा- 201003 पृष्ट- 127
11-   रामायण की प्र्रगतिषील प्रेरणाए, युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट गायत्री’ तपोभूमि, मथुरा- 201003

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