ABSTRACT:
बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।।
मानव जीवन एक बड़ा सौभाग्यशाली और अनमोल जीवन माना गया है। जो सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन इतना सौभाग्यशाली एवं इतनी प्रगति करने के बाद भी उसका जीवन हताशा, निराशा, घुटन, पीड़ा, पतन और पराभव से बीत रहा है। प्रत्येक प्राणी काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, तनाव, चिंता अवसाद आदि मानसिक विकारों से घिरा हुआ है। वह सुख शांति की कामना कर रहा है। जिससे दुखों से मुक्त होकर अपने जीवन लक्ष्य की प्राप्त कर सके। जिसके परिपेक्ष्य में तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में मानव उत्कर्ष के परिपेक्ष्य में नवधा भक्ति की व्यवहारिक व्याख्या बहुत ही सुंदर ढंग से की है। यदि व्यक्ति अध्यात्म का मार्ग अपनाकर नवधा भक्ति को अपने जीवन व्यवहार में अपनाता है। तो निश्चय ही उसका जीवन पतन, पराभव, संतापो, दुखों आदि से मुक्त हो जाएगा और प्राणी शीघ्र ही आनंद पूर्वक अपने जीवन लक्ष्य की प्राप्ति कर लेगा और नवधा भक्ति की साधना से प्राणी संसार सागर से मुक्त होकर परमात्मा चेतना में विलीन हो जाता है
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प्रांशु कुमार मौर्य, निधि. मानव उत्कर्ष के परिपेक्ष्य में महाकाव्य रामचरितमानस में वर्णित नवधा भक्ति की व्यावहारिक जीवन में प्रासंगिकता. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2023; 11(2):107-5. doi: 10.52711/2454-2687.2023.00016
Cite(Electronic):
प्रांशु कुमार मौर्य, निधि. मानव उत्कर्ष के परिपेक्ष्य में महाकाव्य रामचरितमानस में वर्णित नवधा भक्ति की व्यावहारिक जीवन में प्रासंगिकता. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2023; 11(2):107-5. doi: 10.52711/2454-2687.2023.00016 Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2023-11-2-7
सन्दर्भ सूची
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