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हर्षा पाटिल, अब्दुल सत्तार, नंद किषोर सिंह
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डाॅ.हर्षा पाटिल1, डाॅ.अब्दुल सत्तार2, नंद किषोर सिंह3
1सहायक प्राध्यापिका, कंिलंगा विष्विद्यालय, नया रायपुर.
2विभागाध्यक्ष, कमला नेहरू महाविद्यालय, कोरबा.
3शोधार्थी, कंिलंगा विश्वविद्यालय, नया रायपुर.
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 8,
Issue - 4,
Year - 2020
ABSTRACT:
शिक्षा किसी भी राष्ट्र की ध्ूारी है जिस पर उसके विकास का चक्र घूमता है राष्ट्र जनों मानसिक क्षितिज का विस्तार देकर उन्हें प्रत्येक क्षेत्र में कार्य सक्षम बनाना षिक्षा का उपहार है। षिक्षा को मानवीय जीवन का ज्योर्तिमय पक्ष माना है, जिससे मानव के व्यक्तित्व का चर्तुमुखी विकास होता है। षिक्षा मानव के बौद्धिक तथा सामाजिक विकास में जन्म से चल रही प्रक्रिया है। मानव जन्म से लेकर मृत्यु तक जो कुछ सीखता है या करता है वह षिक्षा के माध्यम से ही करता है। प्राचीन काल में षिक्षा को न तो पुस्तकीय ज्ञान का पर्यायवाची माना गया और न ही जीवकोपार्जन का साधन है वरन् षिक्षा को वह प्रकाष माना गया है,जो व्यक्ति को उत्तम जीवन व्यतीत करने व मोक्ष प्राप्त करने का साधन माना है।
Cite this article:
हर्षा पाटिल, अब्दुल सत्तार, नंद किषोर सिंह. जेल में सजायाफ्ता कैदियों में शिक्षा के प्रति रूचि का अध्ययन. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2020; 8(4):219-225.
Cite(Electronic):
हर्षा पाटिल, अब्दुल सत्तार, नंद किषोर सिंह. जेल में सजायाफ्ता कैदियों में शिक्षा के प्रति रूचि का अध्ययन. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2020; 8(4):219-225. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2020-8-4-1
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