Author(s): Vrinda Sengupta

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Address: Dr. Mrs.Vrinda Sengupta
Asstt. Prof. Sociology, Govt.T.C.L.P.G. College, Janjgir (C.G.)

Published In:   Volume - 3,      Issue - 2,     Year - 2015


ABSTRACT:
युवावस्था जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है। 21 वर्ष की आयु से युवावस्था प्रारंभ हो जाती है। 21-45 वर्ष की आयु युवावस्था कहलाती है। यह अवस्था गृहस्थाश्रम कहलाती है। यह अवस्था जिम्मेदारियों के वहन की, कर्तव्यों के पालन की अवस्था है। व्यक्ति अपने व्यवसाय का चुनाव, जीवन साथी चुनाव, वृद्ध माता-पिता, सास-ससुर आदि की सेवा, सामाजिक दायित्वों का निर्वहन, नाम, यश, धन आदि के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है। यह कठोर परिश्रम एवं संघर्ष की अवस्था है। इस अवस्था में व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसे उसका फल बुढ़ापे में भुगतना पड़ता है। इस अवस्था में शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन व्यक्ति के जीवन में आते हैं। उससे अधिक समस्याओं का उसे सामना करना पड़ता है जिससे उसे समायोजन में कठिनाई होती है। वास्तव में हम अवांछित स्थितियों को आमंत्रित कर तनाव और व्याधियां मोल लेते है। समय का उचित उपयोग नहीं कर पाते। तनाव आज के युवा के सबसे भयंकर मानसिक व्याधि है।


Cite this article:
Vrinda Sengupta. युवावस्था में तनाव. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(2): April- June. 2015; Page 82-84.

Cite(Electronic):
Vrinda Sengupta. युवावस्था में तनाव. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(2): April- June. 2015; Page 82-84.   Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2015-3-2-8


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