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प्रति कुशवाहा
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डाॅ. प्रति कुशवाहा
सहा.प्राध्यापक (वाणिज्य), सिन्धू कन्या महाविद्यालय, सतना (म.प्र
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 6,
Issue - 3,
Year - 2018
ABSTRACT:
खाद्य सुरक्षा से तात्पर्य है सभी लोगों को सक्रिय और स्वस्थ जीवन बिताने के लिये कभी भी भोजन का अभाव न होने देना। सर्वप्रथम ब्राजील के राष्ट्रपति लुला दॅ सिल्वा ने अपने यहाॅ खाद्य सुरक्षा का कानून लागू किया था। लूला के प्रयोग की सफलता ने सारी दुनिया के लिये सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में एक माॅडल देने का काम किया। हमारे देश के लिये भी खाद्यान्न सुरक्षा बेहद जरूरी है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति बिना खाये जिंदा नहीं रह सकता है। हालांकि भारत ने 35 वर्ष पहले ही इस मामले में आत्म निर्भरता प्राप्त कर ली, इसके बावजूद आज भी देश में 35 प्रतिशत जनंसख्या खाद्यान्न के मामले में असुरक्षित है। देश में हरितक्रांति के फलस्वरूप उत्पादन कई गुणा बढ़ा है। इसके बावजूद जिस तरह हमारी आबादी बढ़ रही है उनके अनुरूप खाद्यान्न का उत्पादन नहीं बढ़ रहा है। हमे इस बात पर भी विचार करना होगा कि देश में हर तीसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है और रोज लगभग 10 से 20 करोड़ लोग भूखे सोते हैं अप्रैल 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने एक गोष्ठी में कहा था, कि ‘‘लोकतंत्र और भूख साथ-साथ नहीं चल सकते है’’। भूख और कुपोषण पर ‘हंगामा’ रिपोर्ट जारी करते हुये प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह कहते है कि ‘‘हमारी जी.डी.पी. में पर्याप्त वृद्धि के बावजूद देश में कुपोषण का स्तर अस्वीकार्य रूप से ऊॅचा है यह बड़े शर्म की बात है’’।
Cite this article:
प्रति कुशवाहा. भारत में खाद्य सुरक्षा का आर्थिक विश्लेषण. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(3):305-310.
Cite(Electronic):
प्रति कुशवाहा. भारत में खाद्य सुरक्षा का आर्थिक विश्लेषण. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2018; 6(3):305-310. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2018-6-3-18