Author(s): सुनील कुमार कुमेटी, बी. एल. सोनेकर, भारती सिंह कुमेटी

Email(s): sunilkumeti.eco@gmail.com

DOI: Not Available

Address: सुनील कुमार कुमेटी1, बी. एल. सोनेकर2, भारती सिंह कुमेटी3
1सहायक प्राध्यापक, अर्थषास्त्र अध्ययनषाला, पं. रविषंकर शुक्ल विष्वविद्याल रायपुर (छ.ग.)
2एसोसिएट प्राफेसर, अर्थषास्त्र अध्ययनषाला, पं. रविषंकर शुक्ल विष्वविद्याल रायपुर (छ.ग.)
3सहायक प्राध्यापक अतिथि, अर्थषास्त्र विभाग, शासकीय दू. ब. महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय रायपुर (छ.ग.)
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 10,      Issue - 3,     Year - 2022


ABSTRACT:
आज कृषि जीवन व्यापन का साधन मात्र ही नहीं बल्कि कृषक¨ं क¢ आर्थिक विकास का प्रमुख स्र¨त भी है। कृषि राज्य का विषय है और अधिकांष राज्य सरकारों ने पारदर्षिता और व्यापारियों के विवेकाधिकार को समाप्त करने के लिए 1950 के बाद कृषि उपज विपणन समिति अधिनियम लागू किया। जिसके अंतर्गत कृषि उपज विपणन मण्डियों की स्थापना की गई। यह समग्र रूप से सरकारी नीतियों का विस्तार है, जो खाद्य सुरक्षा, किसानों को लाभकारी मूल्य और उपभोक्ताओं के उचित मूल्य को निर्देषित करता है। कृषि उपज विपणन मण्डी क¢ अन्तर्गत उपज¨ं क¨ एकत्रित करना, उनका श्रेणीकरण व प्रमाणीकरण करना, भण्डारण, परिवहन, वितरण प्रणालियां आदि क्रियाओं क¨ किया जाता है। प्राचीन काल से ही कृषि उत्पाद¨ं की क्रय-विक्रय में बिच©लिय¨ं का ब¨लबाला रहा है जिससे किसानों क¨ उसक¢ उत्पाद¨ं की लागत भी नहीं मिल पाती थी। आजादी क¢ पष्चात् हमारे देष क¢ नीति निर्माताअ¨ं ने कृषि एवं कृषकों क¢ महत्व क¨ ध्यान में रखते हुए य¨जनाएं बनाई। जिससे भारत ने 19 वीं सदी क¢ छठवें दषक के उत्तरार्ध में अनाज अ©र कृषि उत्पाद¨ं क¢ मामले में लगभग पूर्णतः आत्मनिर्भर ह¨ गया था। भारत सरकार क¢ कृषि मंत्रालय क¢ अंतर्गत ग्रामीण विकास विभाग की कृषि-विपणन षाखा द्वारा कृषि उपज की विपणन क¢ लिए अनेक प्रयास किए गए हैं। लेकिन देष में लगभग 86 प्रतिषत कृषि योग्य भूमि का स्वामित्व छोटे एवं सीमांत कृषकों के पास है। इन किसानों के लिए विपणन योग्य अधिषेष सीमित होने के कारण मंडियों तक की परिवहन लागत को वहन करना संभव नहीं होता है। परिवहन लागत से बचने के लिए कृषकों को अपनी उपज स्थानीय व्यापारियों को ही बेचनी पड़ती है, भले ही कम कीमत पर क्यों न बेचनी पड़े। मण्डियों के व्यापक तंत्र के अभाव में छोटे व सीमांत किसानों को अपनी उपज की बिक्री के लिए स्थानीय व्यापारियों पर ही निर्भर रहना होगा।


Cite this article:
सुनील कुमार कुमेटी, बी. एल. सोनेकर, भारती सिंह कुमेटी. दुर्ग जिला क¢ पाटन विकासखण्ड में कृषक¨ं क¢ आर्थिक विकास में कृषि उपज मण्डी की भूमिका. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2022; 10(2):91-5.

Cite(Electronic):
सुनील कुमार कुमेटी, बी. एल. सोनेकर, भारती सिंह कुमेटी. दुर्ग जिला क¢ पाटन विकासखण्ड में कृषक¨ं क¢ आर्थिक विकास में कृषि उपज मण्डी की भूमिका. International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2022; 10(2):91-5.   Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2022-10-3-1


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