Author(s):
देवेन्द्र कुमार, अब्दुल सत्तार, भारती कुलदीप
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डाॅ.देवेन्द्र कुमार1, डाॅ.अब्दुल सत्तार2, श्रीमती भारती कुलदीप3
1सहायक प्राध्यापक,कंिलंगा विष्वविद्यालय,नया रायपुर.
2विभागाध्यक्ष,कमला नेहरू महाविद्यालय,कोरबा.
3श्रीमती भारती कुलदीप,सहायक प्राध्यपक,कमला नेहरू महाविद्यालय,कोरबा.
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 8,
Issue - 4,
Year - 2020
ABSTRACT:
षिक्षा जन्म से मृत्युपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है षिक्षा के माध्यम से बालक या व्यक्ति स्वयं को ज्ञान और अनुभव का धनी बनाता है। ज्ञान, अनुभव और समायोजन द्वारा वह अपने व्यवहार को परिवर्तित कर समय उपयोगी, षुद्ध और कल्याणकारी बनाता है। अतः हम कह सकते हैं,कि षिक्षा मानव चेतना का ज्योर्तिमय सांस्कृतिक पक्ष है, जिससे व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास होता है। अरस्तु ने ठीक ही कहा है कि - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।’’ षिक्षा के अभाव में मानव जीवन की कल्पना करना असंभव है। सृष्टि से लेकर अब तक षिक्षा का प्रभाव व अस्तित्व भली प्रकार स्वीकार किया जा रहा है। जब तक संसार में मानव का अस्तित्व बना रहेगा, तब तक षिक्षा की प्रक्रिया निरंतर चलती रहेगी।
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देवेन्द्र कुमार, अब्दुल सत्तार, भारती कुलदीप. पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों में बच्चों की षैक्षिक समस्या पर एक अध्ययन. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2020; 8(4):235-241.
Cite(Electronic):
देवेन्द्र कुमार, अब्दुल सत्तार, भारती कुलदीप. पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों में बच्चों की षैक्षिक समस्या पर एक अध्ययन. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2020; 8(4):235-241. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2020-8-4-4
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