ABSTRACT:
प्रस्तुत अध्ययन छत्तीसगढ़ में कृषि प्रकारिकी से संबंधित है। प्रस्तुत अध्ययन के उद्देश्य छत्तीसगढ़ में कृषि प्रकारिकी को ज्ञात करना एवं कृषि प्रकारिकी को निर्धारित करने वाले सामाजिक एवं स्वामित्व, कार्यकारी एवं तकनीकी, उत्पादन एवं सरंचनात्मक चरों की व्याख्या है। प्रस्तुत अध्ययन कृषि सांख्यिकी एवं कृषि संगणना, 2015-16, निवेश सर्वे ;प्दचनज (Input Survey) 2016-17 पर आधारित है। प्रस्तुत अध्ययन में छत्तीसगढ़ को 5 कृषि प्रकारिकी में रखा गया है। कोस्ट्रोविक्सेंकी (1972) की अध्यक्षता में अंतर्राष्ट्रीय भौगोलिक संगठन द्वारा कृषि प्रकारिकी की व्याख्या हेतु विचरकों को 4 प्रमुख वर्गाें में वर्गीकृत किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन में प्रथम वर्ग में सामाजिक में 8, द्वितीय वर्ग कार्यकारी में 7, तृतीय वर्ग उत्पादन में 7 और चतुर्थ में सरंचनात्मक में 6 विचरकों को शामिल किया गया है। इस तरह कुल 28 विचरकों को अध्ययन में शामिल किया गया है। सभी विचरकों को प्रतिशत, दर, अथवा अनुपात में व्यक्त किया गया है। छत्तीसगढ़ के 27 जिलों को अध्ययन की इकाई माना गया है। सभी जिलों को चयनित 28 विचरकों के आधार पर 5 वर्ग-अति निम्न, निम्न, मध्यम, उच्च और अति उच्च में बाँटा गया है। प्रत्येक जिले के सभी 28 विचरकों के कोड का योग किया गया है। तत्पश्चात् सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ को 5 कृषि प्रकारिकी में बाँटा गया है। प्रथम अर्द्ध वाणिज्यिक कृषि प्रदेश जो प्रदेश के पश्चिमी में मैकल श्रेणी के अंतर्गत शामिल है। यह कृषि प्रदेश व्यापारिक कृषि के लिए पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान पर है। द्वितीय श्रम शक्ति एवं सिंचित खाद्यान्न फसल कृषि प्रकार प्रदेश के मध्य में मैदानी क्षेत्रों में विकसित है। इस क्षेत्र में सिंचाई साधन अपेक्षाकृत अधिक है। जिससे प्रति हे. उपज एवं शस्य विशेषीकरण अधिक पाया गया है। तृतीय पशु शक्ति निवेश एवं असिंचित धान कृषि प्रकार प्रदेश के दक्षिण में बस्तर के पठार के अंतर्गत शामिल है। विषम धरातल के कारण इन क्षेत्रों में जोत का आकार अपेक्षाकृत बडा है। यंत्री करण कम होने से पशु शक्ति का निवेश अधिक हुआ है जिससे प्रति हे. उत्पादन न्यून है। इन क्षेत्रों में सिंचाई सुविधा नगण्य होने के कारण मोटे अनाजों की कृषि की जाती है। चतुर्थ पशु शक्ति निवेश एवं असिंचित रबी फसल कृषि प्रकार के अंतर्गत कृषि में पशु शक्ति का निवेश अधिक हुआ है। औद्यौगिक उपज हेतु कृषि इन क्षेत्रों की विशेषता है। सिंचाई सुविधा अत्यंत कम होने के बाद भी रबी फसल जैसे गेंहू, और चना एवं गन्ना की कृषि के लिए यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है। पंचम श्रम प्रधान असिंचित धान कृषि प्रकार में रासायनिक खाद एवं जैविक खाद के अधिक उपयोग किंतु सिंचाई सुविधा की कमी से प्रति हे. उत्पादन कम है। यह क्षेत्र एक फसलीय प्रदेश धान के अंतर्गत है।
Cite this article:
अनुसुइया बघेल. छत्तीसगढ़ में कृषि प्रकारिकी (Agricultural Typology in Chhattisgarh). International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2021; 9(2):71-9.
Cite(Electronic):
अनुसुइया बघेल. छत्तीसगढ़ में कृषि प्रकारिकी (Agricultural Typology in Chhattisgarh). International Journal of Reviews and Research in Social Sciences. 2021; 9(2):71-9. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2021-9-2-2
REFERENCES:
1. Agricultural Census Privisions, (2016): Agriculture Census, 2015-16, Department of Agriculture and Corporation, Ministry of Agriculture, New Delhi.
2. Agricultural Census Privisions, (2016) : Agriculture Census : Input Survey 2016-17, Department of Agriculture and Corporation, Ministry of Agriculture, New Delhi.
3. Ali, A. M. S., (1986): “Agricultural typology of Bangladesh,” V. R. Singh and N. K. Singh (eds.), Propective in Agricultural Typology Tara Printings Works Varanasi, pp. 158-173.
4. Dutta, L. N., (1997) : “Agricultural Production Efficiency and Form Size”, University Publishing Company, Ranchi.
5. Kampp, A. H., (1959) : “Some Typer of Formong in Danmark”, Oriental Geographer Vol. 3, No. 1, pp. 17-32.
6. Kostrowiecki, Jerzy (1974) : The Typology of World Agricultural, Principles, Methods and Model Types, IGU Commission on Agricultural Typology, Varsaw.
7. Kostrowicki, J., (1977) : “Agricutural Typology, Concept and Method”, Agricultural Systems, Vol. II, pp. 33-45.
8. Krystyna, Bielecka, etal (1979) : “Proposal of New Taxonamic Methods for Agricultural Typology”, Geographia Polonica, No. 40, pp. 191-200.
9. Krystyna, Bielecka, and Paprzycki, Mirosalaw (1979) : “Evaluation of Taxonomic Method from the Point of View of Comparatility of Results in Space and time-in Optimization Aspect”, Geographia Polonica, Vol. 40, pp. 187-190.
10. Lal, M., (1986) : “Agricultural Typology in Micro Level Planning”, V. R. Singh and N. K. Singh (eds.), Propective in Agricultural Typology, Tara Printings Works, Varanasi, pp. 113-127.
11. Mishra, R. P., (1968) : “Diffusion of Agricultural Innovation”, Prasaranga University of Mysoure, University of Mysoure.
12. Panda, B. P. (1979) : “Agricultural Types in Madhya Pradesh”, Geographia Polonica, Vol. 40, pp. 133-150.
13. Roy, B. K., (1986) : “Agricultural Typology in India Somr Issues,” V. R. Singh and (eds.) Propective in Agricultural Typology, Tara Printings Works Varanasi, pp. 148-157.
14. Saxena, J. P. And S. N. Mehrotra (1979) : “Regional Imbalances in the Agricultural Development of Madhya Pradesh, India”, Geographia Polonica, Vol. 40, pp. 201-208.
15. Singh, S. K., (1976) : “Land Reform and Emerging Agrarian Structure in Bihar”, Indian Journal of Agricultural Economics, Vol. XXXI, No. 3.
16. Singh, L. R., (1986) : “Agricultural Typology in India: Methods and Techniques,” in Contribution to Indian Geography, Agricultural Geography, Vol. VIII, P. S. Tiwari (ed.), Heritage Publishers , New Delhi, pp. 91-106.
17. Singh, V. R., (1986) : “Agricultural Typology in India in Agricultural Geography”, Contribution to Indian Geography, Agricultural Geography, Vol. VIII, P. S. Tiwari (ed.), Heritage Publishers , New Delhi, pp. 107-127.
18. Singh, V. R. and N. K. Singh (1986) : “Typology of Classification of Agriculture in India,” V. R. Singh and N. K. Singh (eds.) Propective in Agricultural Typology,Tara Printings Works Varanasi, pp. 74-88.
19. Shafi, M. (1960) : “Measurment of Agricutural Efficiency in Uttar Pradesh”, Economic Geography, Vol. 26, No. 4, pp. 296-305.
20. Shafi, M. (1970) : Land Utilization in Eaastern Uttar Pradesh, University Press Aligarh.
21. Sharma, S. K., (1986) : “Doption of Agricultural Development in Relation to Size and Tenacy of Operational Holding in Madhyapradesh”, Indian Journal of Regional Science, Vol. 20, No. 2, pp. 27-39
22. Stamp, L. D. (1968) : Our Devoloping World, Faber and Faber, Landon.
23. Stanislaw, Lewinski (1979) : “Taxonomic Methods in Regional Studies”, Geographia Polonica, Vol. 15, pp. 189-197.
24. Stola, Wladyslawa, (1992) : “Transeformation in Agricultural Landuse in Poland: 1946-1988, in New Dimensions in Agricultural Geography”, Vol. 4, Noor Mohmmad (ed.), Landuse and Agricultural Planning, Concept Publishing Campony, New Delhi, pp. 191-203.
25. Szczesny, R., (1986) : “Agricultural Typology of the Alpine Areas Austria and Swittzerland”, V. R. Singh and N. K. Singh (eds.), Propective in Agricultural Typology, Tara Printings Works Varanasi, pp. 26-38.
26. Szyrmer, J. H., (1986) : “The Typology of Large Scale Self-Managed Agriculture in Algeria”, V. R. Singh and N. K. Singh (eds.) Propective in Agricultural Typology, Tara Printings Works Varanasi, pp. 55-73.
27. Tyszkiewicz, Wieslawa, (1974) : “Agricultural Typology of the Thracian Basin, Bulgaria As a Case of the Typology of World Agriculture”, Geographia Polonica, No. 40,pp.171-186.
28. Webb, John, W., (1959) : “Basic Concepts in the Analysis of Small Urban Centres of Minnesota”, AAAG, Vol. 49, No. 1, pp. 55-72.