ABSTRACT:
कृषि मानव सभ्यता के प्राचीनतम उद्यमों में से एक है, मानव को सफलतापूर्वक जीवन-यापन करने के लिए अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति करनी पड़ती है, जिनमें से पेट की भूख सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इसकी पूर्ति कृषि के द्वारा की जाती है, और यही कारण है कि प्राचीन काल से ही इसे एक महत्वपूर्ण व्यवसाय माना जाता है। कृषि आज भी अनेक विकसित एवं विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था का आधार है, वास्तव में कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरूदण्ड है। अतः कृषि का लाभप्रद होना सरकार एवं राष्ट्र के लिए अनुकूल बात होगी। केने का कहना है कि उद्योग एवं वाणिज्य दोनों कृषि के ही अधीन हैं, क्योंकि इन्हें कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होता है। प्रकृति वादियों ने तो यहां तक कहा है कि केवल-’’कृषक राष्ट्र ही समृद्ध एवं टिकाऊ साम्राज्य स्थापित कर सकते हैं। फलस्वरूप हरित क्रान्ति का सृजन और चलन हुआ, आधुनिक तकनीकी युक्त कृषियन्त्रों, कृषि उपकरणों, उन्नत बीजो का प्रचलन तथा रासायनिक उर्वरको के उपयोग में वृद्धि ने उत्पादन तथा उत्पादकता के स्तर को समुनन्त किया। कृषि के उन्नत के साथ कृषि विपणन व्यवस्था का उन्नत होना आवश्यक है, क्योंकि यह अनुभव किया जाने लगा है कि कृषि उत्पादों के विपणन का उतना ही महत्व है जितना स्वतः उत्पादन का वस्तुतः विपणन की क्रिया का अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि इसके द्वारा उपभोग और उत्पादन में सन्तुलन ही नही वरन् अधिक विकास का स्वरूप भी निर्धारित होता है।
Cite this article:
पुष्पराज कुमारी तिवारी. सतना जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि विपणन का आर्थिक विश्लेषण. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(3):701-706.
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पुष्पराज कुमारी तिवारी. सतना जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि विपणन का आर्थिक विश्लेषण. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(3):701-706. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2019-7-3-15