ABSTRACT:
विश्व के प्रत्येक देश में लोगो को इतिहास की समझ एक समय पर नहीं हुयी हैं बल्कि इसका ज्ञान अलग-अलग समय पर हुआ है। किसी भी देश का अपना कुछ न कुछ इतिहास होता है जिसके विषय में सुचनाऐं हमें समकालीन मनीषियों के द्वारा लिखें गयें साहित्यों में से होती है किन्तु इस प्रकार के साहित्य में कौन सी सामाग्री इतिहास लेखन में सहायक सिद्व होगी इसका निर्धारण कर पाना कठिन कार्य है। इतिहास लेख या इतिहासिकी का शाब्दिक अर्थ इतिहास लेखन की कला है। दुनिया के विभिन्न जन समुदायों और विभिन्न कालों में अतीत का जिज्ञासु बोध यानी ऐतिहासिक बोध एक समान मौजुद नहीं रहा है।प्राचीन यूनान एवं रोम तथा यहूदी एवं इसाई धर्मों ने युरोप से शक्तिशाली इतिहास बोध विरासत में लिया हैं किन्तु प्राचीन भारत में इतिहास बोध को देखा जाये तो इस सम्बन्ध में विद्वानो में काफी मतभेद है। विद्वानों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि प्राचीन भारत में भारतीयों को इतिहास लेखन की समझ नहीं थी। इस प्रकार की सोच रखने वाले विद्वानों में विन्टर निट्ज मैक्समूलर आदि का नाम उल्लेखनीय हैं। इस मान्यता के विपरीत विद्वानों का एक वर्ग यथा, डां. गोविन्द चन्द्र पाण्डेय, डा. विश्वम्भर शरण पाठक, नीलकंठ शास्त्री आदि ने अपनी कृतियों के माध्यम से प्रमाणित करने का प्रयास किया कि भारतीय इतिहास लेखन की कला से परिचित थे।
अतः इस शोध पत्र के माध्यम से मेरे द्वारा प्राचीन भारत में इतिहास लेखन के दोनों मतों का समीक्षात्मक लेखन प्रस्तुत शोध पत्र में किया गया है।
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नितेश कुमार मिश्रा. प्राचीन भारत में इतिहास लेखन की समीक्षा. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 4(2): April - June, 2016; Page 89-92.
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नितेश कुमार मिश्रा. प्राचीन भारत में इतिहास लेखन की समीक्षा. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 4(2): April - June, 2016; Page 89-92. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2016-4-2-7