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ज्योति पांडेय, अन्नपूर्णा देवांगन
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डाॅ. (श्रीमती) ज्योति पांडेय1, श्रीमती अन्नपूर्णा देवांगन2
1शोध-निर्देशक, उप संचालक, उच्च शिक्षा विभाग, मंत्रालय, अटल नगर, रायपुर (छ.ग.)
2शोधार्थी, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर( छ ग
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 7,
Issue - 2,
Year - 2019
ABSTRACT:
छŸाीसगढ़ में लोक-संस्कृति के अंतर्गत लोकगीत वाचिक परंपरा के द्योतक हैं। यहाँ पर लोकगीतों का समृद्ध भंडार है, जो लोक-जीवन के विभिन्न क्रियाकलापों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं को उजागर करती है। लोकगीत लोक-जीवन की अलिखित व व्यवहारिक रचनाएँ हैं, जो लोक-परंपरा से प्रचलित व प्रतिष्ठित होती है। लोकगीतों के रचयिता प्रायः अज्ञात होते हैं। वस्तुतः ये गीत समूहगत रचनाशीलता का परिणाम होते हैं तथा मौखिक परंपरा में जीवित रह कर युगों की यात्रा करते हैं। वे गीत कटुताओं, पर्वों, संस्कारों के अतिरिक्त धर्म व श्रम से भी संबंधित होते हैं।
छŸाीसगढ़ भले ही पिछड़ा प्रदेश है, पर यहाँ की नारियाँ स्वावलंबी हैं। पुरुषों पर निर्भर न रहकर अपनी मेहनत व ताकत से पुरुष-वर्ग के साथ बराबर कंधे-से-कंधा मिलाकर चलती हैं। गृह-कार्य ही नहीं यहाँ की स्त्रियाँ अपने बुद्धि, बल व चातुर्य से अपनी शक्ति प्रदर्शित करती हैं। छŸाीसगढ़ प्रदेश मातृसŸाात्मक प्रदेश रहा है, किंतु कालांतर में पितृसŸाात्मक व्यवस्था पनपने लगी और नारी का शोषण होने लगा। संस्कारित, मर्यादित छŸाीसगढ़ी नारी अपने मन की व्यथा कहने से सकुचाती कितने ही कष्ट सहन कर लेती है, किंतु होठों पर मुस्कान छाई रहती है।
Cite this article:
ज्योति पांडेय, अन्नपूर्णा देवांगन. छŸाीसगढ़ी लोकगीतों में नारी-संवेदना . Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2):457-462.
Cite(Electronic):
ज्योति पांडेय, अन्नपूर्णा देवांगन. छŸाीसगढ़ी लोकगीतों में नारी-संवेदना . Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2):457-462. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2019-7-2-30