Author(s):
एस के. ठाकुर, अभिनेष सुराना, संगीता रंगारी
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rangarisangeeta@gmail.com
DOI:
Not Available
Address:
डाॅ एस के. ठाकुर1, डाॅ अभिनेष सुराना2, संगीता रंगारी3
1निर्देषक, खुबचंद बघेल, शा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, भिलाई - 3 (छ.ग.)
2सहनिर्देषक, वी.वाय.टी. स्नातकोत्तर, महाविद्यालय, दुर्ग (छ.ग.)
3शोधार्थी, सहायक प्राध्यापक (हिन्दी), वी.रा.अ.ब.लो. शासकीय कला, एवं वाणिज्य महाविद्यालय, रामाटोला जिला-राजनांदगाँव( छ ग
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 7,
Issue - 2,
Year - 2019
ABSTRACT:
प्रस्तुत शोध-पत्र में छत्तीसगढ़ी लोकगीत में शांत रस की व्याप्ति को अभिहित किया गया है। आज हम जिस भी अच्छी बुरी स्थिति में खड़े है, वह हमारे कर्मो का ही फल है। जीवन में सुख शांति एवं भटकाव से मुक्ति हमें भजन, ईष्वर की स्तुति के माध्यम से ही हासिल होती है। यानि जीवन में कुछ समय शांति की स्थापना के लिए ईष्वरीय भक्ति भजन कर मन शांत किया जा सकता है।
Cite this article:
एस के. ठाकुर, अभिनेष सुराना, संगीता रंगारी. छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में शांत रस. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2):441-443.
Cite(Electronic):
एस के. ठाकुर, अभिनेष सुराना, संगीता रंगारी. छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में शांत रस. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(2):441-443. Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2019-7-2-26