Author(s): Vrinda Sengupta

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Address: Dr. Mrs.Vrinda Sengupta
Asstt. Prof. Sociology, Govt.T.C.L.P.G. College, Janjgir (C.G.)

Published In:   Volume - 3,      Issue - 3,     Year - 2015


ABSTRACT:
धरती और किसान का अटूट रिश्ता है, वह अपनी जमीन से सर्वाधिक लगाव रखता वही उसका सब कुछ है। दरअसल कृषक समाजों के लिए कृषि कोई धंधा नहीं बल्कि उनकी जीवन शैली है। किसान के लिए खेती कोई व्यापार-व्यवसाय भी नहीं है, बल्कि यह तो उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी का एक बड़ा हिस्सा है,ै किसान अपने खेतों से सर्वाधिक लगाव रखता है और वह किसी भी कीमत पर अपने खेत छोड़ने को तैयार नहीं होता। लाख प्रलोभन भी उसे नहीं डिगा पाते, किसान के लिए उसका खेत ही सब कुछ होता है, सब कुछ खोकर भी वह ‘‘किसान’’ बना रहना चाहता है। वह दो बीघे की जायदाद का मालिक कहलाना ज्यादा पसंद करता है और जब-जब उसकी इस धरोहर को छीनने की कोशिश की गई है, तब-तब उसने उग्र रुप धारण किया है और आंदोलन के रास्ते पर उठ खड़ा हुआ है। प्रमाण स्वरुप अंगे्रजों के विरुद्ध हुए किसानों के आंदोलन देखे जा सकते है। हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं किसान जीवन की विधिक छवियों का प्रमाणिक अंकन समय-समय पर हुआ है। पे्रमचंद ने अपने रचनाओं माध्यम से किसान को साहित्य में एक मुकम्मल जगह प्रदान की। उन्होनंे किसान जीवन को बहुत करीब से देखा और फिर उसकोे अपने लेखन का केन्द्र बनाया। प्रेमचंद के प्श्चात् ग्रामीण जीवन पर बहुत लेखकों ने उपन्यास और कहानियां लिखी जो उल्लेखनीय रही है। साथ ही हिन्दी कविता में भी किसान जीवन की विविध छवियां अंकित है। लेकिन इधर के वर्षो में परिस्थितियां बदली है। 21वीं सदी की विभिन्न चुनौतियों ने किसानांे के समक्ष बहुत सारे सवाल खड़ेे कर दिए। वैश्वीकरण और भू-मण्डलीयकरण के प्रभाव ने अन्नदाताओं को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। बढ़ते पूंजीवादी प्रभाव ने किसान जीवन को हाशिए पर धकेल दिया है। लेखन की दुनिया में भी आज किसान धीरे-धीरे गायब होता जा रहा है। ऐसे भीषण समय में पे्रमचंद आज भी हमारे लिए प्रासंगिक और समकालीन है क्योंकि न किसानों और जमीन की समस्या हल हुई है न भूमिहीन मजदूरों को श्रम शोषण से मुक्ति मिली है, बल्कि उसमें स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों और अल्प संख्यकों के नये आयाम और जुड़ गए। पे्रमचंद की संवेदना, सरोकार और दृष्टि ही उनकी परम्परा है। जिसे हम आज जल, जमीन और जंगल के असमान वितरण के संघर्ष के रुप में देख रहे है।


Cite this article:
Vrinda Sengupta . हिन्दी साहित्य में किसानः सपने, संघर्ष, चुनौतियाॅ और 21 वीं सदीं’ मीडिया, बाजार, विज्ञापन और फिल्मी दुनिया समाचार के आइने में युवा भारतीय किसान. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(3): July- Sept., 2015; Page 137-140

Cite(Electronic):
Vrinda Sengupta . हिन्दी साहित्य में किसानः सपने, संघर्ष, चुनौतियाॅ और 21 वीं सदीं’ मीडिया, बाजार, विज्ञापन और फिल्मी दुनिया समाचार के आइने में युवा भारतीय किसान. Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 3(3): July- Sept., 2015; Page 137-140   Available on: https://ijrrssonline.in/AbstractView.aspx?PID=2015-3-3-6


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